भारतीय संस्कृति में एक प्रसिद्ध कहावत है – “दीपक तले अंधेरा”। इसका आशय है कि जहाँ सबसे अधिक प्रकाश होना चाहिए, वहीं अंधेरा पाया जाता है। यदि इस कहावत का कोई प्रत्यक्ष और सजीव उदाहरण देखा जा सकता है, तो वह है जादुगोड़ा (झारखंड)। यह क्षेत्र देश को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण केंद्र है, किंतु यहाँ रहने वाले लोग आज भी गरीबी, बीमारी और उपेक्षा के अंधकार में जीवन बिता रहे हैं। जादुगोड़ा और उसके आसपास के आदिवासी समुदाय के लोग दशकों से यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) द्वारा की जा रही खनन गतिविधियों के गंभीर दुष्प्रभावों से जूझ रहे हैं।

जादूगोड़ा यूरेनियम खान भारत की पहली यूरेनियम खदान है, जो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है और 1967 से संचालित है। यह भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल का उत्पादन करती है, लेकिन यूरेनियम खनन से उत्पन्न होने वाले रेडियोधर्मी कचरे के कारण स्थानीय लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
जादुगोड़ा मत्वपूर्ण क्यों ?
दुनिया भर में कई देश “नेट-ज़ीरो” कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। सोलर और विंड बहुत बढ़िया हैं, लेकिन हर जगह पर्याप्त नहीं हैं, खासकर रात में या मौसम खराब होने पर। इसीलिए न्यूक्लियर पावर एक भरोसेमंद विकल्प माना जा रहा है। इसका एक ही समाधान है ‘यूरेनियम ‘ जो की जादूगोड़ा के पास है परन्तु यहाँ के स्थानय लोगो के साथ कई दशको से भेदभाव किया जा रहा।
जादुगोड़ा से जुड़े तथ्य :-
- जादुगोड़ा, झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले में स्थित है।
- यह जमशेदपुर शहर से सड़क मार्ग से 35 किमी और रेल मार्ग से 20 किमी की दुरी पर स्थित है।
- यहां से प्रतिवर्ष लगभग 200 मेगा टन यूरेनियम का उत्पादन किया जाता है।
- जादुगोड़ा , जिसका स्थानीय आदिवासी भाषा में अर्थ है ‘हाथियों की भूमि’।
- यह भारत की सबसे पुरानी और प्रमुख यूरेनियम खदान है (1967 से कार्यरत)।
- यहाँ से निकला यूरेनियम भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और वैज्ञानिक अनुसंधानों में प्रयुक्त होता है।
- इस दृष्टि से, जादुगोड़ा देश की ऊर्जा सुरक्षा और वैज्ञानिक प्रगति का दीपक है।
स्थानीय लोगों की स्थिति :-
- जहाँ से पूरे देश को उजाला मिलता है, वहीं के स्थानीय लोग अंधेरे में डूबे हैं।
- रेडियोऐक्टिव कचरे के बीच ज़िंदगी – (1 किलो यूरेनियम निकलने मे , करीब 1750 किलो कचरा निकलता है ।)
- इस जहरीले कचरे को जादूगोड़ा और तुरामडीह के दो बड़े टेलिंग तालाब मौजूद हैं, जो कई एकड़ में फैले हुए हैं।
- यहाँ के आदिवासी और ग्रामीण समुदाय गंभीर रेडिएशन-जनित बीमारियों (जन्मजात विकलांगता, कैंसर, त्वचा रोग आदि) से पीड़ित हैं।
- उन्हें स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और सुरक्षित रोजगार जैसी बुनियादी ज़रूरतें भी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
- गरीबी और बेरोज़गारी के कारण लोग कठिन परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर हैं।
- रिश्ता लेकर मेहमान आने पर सबको घर से निकलने से रोक दिया जाता है ताकि विकलांगों की मौजूदगी न दिखे।
जादुगोड़ा की जनसंख्या का विवरण (जनगणना 2011) :-

विडंबना :-
- देश के लिए गौरव का विषय, जादुगोड़ा, यहाँ के निवासियों के लिए अभिशाप जैसा प्रतीत होता है।
- यह विडंबना “दीपक तले अंधेरा” को पूरी तरह चरितार्थ करती है – बाहर उजाला, भीतर अंधकार।
- पुराने समय में जब यहाँ के लोगो को पता नहीं था की यूरेनियम के क्या दुस्प्र्भाव हो सकते है , तब बहुत से भ्रांतियाँ लोगो के मन में थी जैसे :- ” बरगद के पेड़ को लेकर सालों तक यह धारणा रही कि वहां भूत रहता है—खासकर गर्भवती महिलाओं को उस रास्ते से न गुजरने की चेतावनी दी जाती थी। लेकिन बाद में पता चला कि यह “भूत” दरअसल यूरेनियम माइनिंग से फैला रेडिएशन था। महिलाओं के कई बच्चे या तो मरे हुए पैदा हुए या गर्भ में ही दम तोड़ गए। 90 के दशक के बाद से यहां जन्म दोष और विकलांगता के मामले बढ़ते गए। लोगों को जो भूत दिखाई देता था, वह दरअसल रेडिएशन का असर था।”
- जादूगोड़ा की लड़कियों से कोई शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि माना जाता है कि वे मां नहीं बन सकतीं। ‘अशुभ’ या ‘बांझ’ समझा जाने लगा है। यह सिर्फ़ स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सामाजिक बहिष्कार का कारण भी बन चुका है
निष्कर्ष :-
जादुगोड़ा वास्तव में “दीपक तले अंधेरा” मुहावरा एक दम सटीक लागु होता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या विकास का प्रकाश तभी सार्थक है जब वह उस क्षेत्र के लोगों के जीवन को भी आलोकित करे। यदि देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने वाली यह भूमि अपने निवासियों के जीवन में रोशनी नहीं ला पाती, तो यह विकास अधूरा ही कहलाएगा। अतः समय की मांग है कि जादुगोड़ा के स्थानीय लोगों की समस्याओं को गंभीरता से लिया जाए और उन्हें उनके हक़ का उजाला प्रदान किया जाए।